Wednesday, July 22, 2009

संधियों के एवरेस्ट में हिलेरी


अमेरिका से हिलेरी आई हैं। वे परमाणुओं से बने एवरेस्ट को फतह करने आई हैं। उनके मित्र एवं पोषित राष्ट्र पाकिस्तान ने जिस ताज होटल पर सीरियल धमाकों की साजिश रची थी , वहीं वे ठहरी हैं। वहां ठहरने की ख्वाहिश उन्हीं की थी। शायद वे देखना चाहती है कि इस मरदूद ताज में ऐसी क्या बात है कि आतंकवाद का उस पर जरा ळाी असर नहीं हुआ। ट्विन-टावर की तरह वह ध्वस्त क्यों नहीं हुआ ? उलटे भारत के सैनय रक्षण का लोहा विश्वशक्तियों की छाती में उतर गया । अमेरिका की आण्विक और रक्षण प्रौद्योगिकी से अपने सुरक्षा कवच रचनेवाला पाकिस्तान भारत के कड़े तेवर से घबरा गया । जो पाकिस्तान ट्विन-टावर गिराने के बाद नहीं घबराया क्योंकि बुश अपने ही थे , वह भारत के ताज का बालबांका न करने के बाद घबराया।
बात में ट्विस्ट है। ट्विस्ट यह है कि बुश का मित्र लादेन जिन्दा भी है और मर भी गया है। मगर बुष सत्ता ये गण् । फिर पीछे पीछे मुशर्रफ़ भी पूरी तरह सुरक्षित सत्ता से बाहर गए। अब अमेरिका में बराक आमबामा आ गए है जो अमेरिका को भावुकता में मुस्लिम देश कह दिया करते है। मगर भारत स्थिर बना हुआ है। वही सोणी-देश ,वही मनमोहन-राष्ट्र।
पाकिस्तान और अमेरिका बहुत सोच-समझकर कदम रख रहे है। ताज होटल के मुजरिम बंदी कसाब का हिलेरी के भारत आने पर सच का स्वीकार करना ,उसी सोचे समझे कदम का एक सिरा है। पिछले राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी और अमेरिका की वत्र्तमान विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन एक ’बिल’ लेकर आई हैं। वैसा बिल नहीं जो ताज को उन्हें देना है। ताज में तो वे राजकीय मेहमान हैं। वे लेकर आई हैं भारत द्वारा परमाणु परिसीमन की शर्त पर परमाणु सहयोग देने का बिल। इस बिल के अंदर पाकिस्तान की सुरक्षा का कवच और अमेरिका का भविष्य सुरखित है। इस बिल का नाम ‘परमाणु -संधि’ है।
भारत एक संधि-प्रधान देश है। भारत और ईस्ट इंडिया कंपनी की संधि इतिहास प्रसिद्ध है। वह हमारी परतंत्रता का शिलालेख है। स्वतंत्र होने पर हमने ‘पंचशील-संधि‘ की और हिन्दी चीनी भाई भाई के बैनर तले भारत का सबसे पहला और बड़ा आक्रमण झेला। हमारा चीनी भाई अमेरिका और पाकिस्तान का दोस्त है। इसलिए हम सुरक्षा की दृष्टि से रूस की तरफ बढ़े। इसके नतीजे में मास्को और तासकंद की संधियों हमने कीं। दुर्योग से हमने इसी समय नेहरू और शास्त्री को खोया। फिर शिमला संधि हुई। संधि को ही समझौता कहते हैं। इसके बाद हमने इंदिरा को खोया और पाकिस्तान ने जुल्फीकार अली को। लंका और भारत के बीच की संधि हुई और उसके बाद राजीव को हमने खो दिया। फिर आया पाक हिंद सीमापार आवागमन का लाहौर-समझौता । उसी के पीछे पीछे चला आया कारगिल सीमा युद्ध। आपदाएं क्या हमेशा संधियों के पीछे से होकर आती हैं ?
अब हमने परमाणु संधि की है। संधि का एक अर्थ दरार भी होता है। जब जब संधियां होती हैं ,किसी दरार की शुरूआत होती है। दबा हुआ षड़यंत्र उन्हीं दरारों में से फूटकर इस तरफ रिस आता है। परमाणु संधि या करार के अंतिम नतीज़ों का हम बेकरारी से इंतज़ार कर रहे हैं। एक हिलेरी ने त्वेनसेंग के साथ हमारे एवरेस्ट पर चढत्रकर कीर्तिमान बनाया था। यह हिलेरी ओबामा के साथ परमाणुसंधि के एवरेस्ट पर चढत्रकर उसका संधिविग्रह कर कहीं ‘ईव‘(शाम) को भारत में ‘रेस्ट‘(ठहराने,टिकाने, आराम कराने )का इंतजाम तो नहीं कर रही ? यह मेरा ख्याल है और भारतीय संविधान के तहत मैं अपने ख्याल के लिए स्वतं़ हूं। मैं क्या करूं हर संधि मंझे हमेशा उस बेवफ़ा मेहबूबा की तरह लगती है जो हमेशा काम निकलने कगे बाद खूबसूरत वायदों को तोड़ दिया करती है। मुहब्बत के ऐव (ईव)-रेस्ट से गिरने वाले किसी मासूम और मायूस कवि ने ही यह शेर लिखा होगा -‘ हुई शाम उनका ख्याल आ गया ।’ 220709

No comments:

Post a Comment