Tuesday, June 9, 2009

उफ़ मेरा वतन !

तप रहा है मन
किन्तु ठण्डा तन
उफ़ मेरा वतन !

दोगली हवा विषाक्त आस्था
जय-ध्वनी को मिल रहा है रास्ता
डूबने लगी लगन की चोटियां
साहिलों में फंस रहा है नाखुदा
क्या करे जतन ,उफ़ मेरा वतन !

चरण चिन्ह रेत के टीलों की ओर
स्वार्थ की कनात के पीछे है भोर
नवविहान का गला दबोचकर
अंधकार कर रहा सुबह का शोर
सुस्त जागरण ,उफ़ मेरा वतन !

न्याय की अंगीठियों में ठूंसकर
हम पका रहे हैं आंख मूंदकर
झूठ के चूल्हे में सच की हौसले,
शक्ति की कढ़ाइयों में गूंथकर
मालेबांकपन , उफ़ मेरा वतन !

हुक्म है पैदा न हो इंसानियत
गर्भ में पला करें हैवानियत
देखते ही गोली मार हो उसे
तोड़ता है जो ग़लत सलाहियत
जिन्दगी दफ़न , उफ़ मेरा वतन !25111975