Friday, July 10, 2009

बागवानी-1

गुलाब कट जाता है तब भी
अपनी जड़ें बना लेता है
जमीन के अंदर
उसी मस्ती से फूलता है
जैसे कभी कटा ही नहीं
जबकि फूलों से ज्यादा हैं
उसके जिस्म में कांटे
भोजन बनाने वाली पत्तियां भी
कंटीली हैं जिसकी...
और गुलाब है कि माद्दा रखते हैं
कहीं भी ,कभी भी
ऊग जाने का

बागवानी-2
आज ही पौधों को मोंगरे के
उखाड़कर जड़ से
किया है हमने पंक्तिबद्ध
जगह की सुन्दरता और तरतीबी के लिए
स्थापित हो गए मोंगरे
परिवर्तित जमीन पर भी
खुशी खुशी ।

हम सोच रहे हैं
अभी कुछ दिनों से
यहां से कहीं नहीं जाएंगे अब
अच्छी है यहां आबोहवा ,
शांति है
और सबसे बड़ी बात
जगह छोटी है ,जानी पहचानी है
पहचान है हमारी ।

अजीब बात है
कलमें उगानेवाला आदमी
अपने लिए विकसित नहीं करता
कटकर फिर जी उठने की कला
उसको तो कभी घर फला -
तो कभी शहर ,
वह स्वयं कभी नहीं फला !

बागवानी -3
उलाहना सुनकर
बौराया नीबू और आम भी
एक टोटका था जिसे मैंने आजमाया
इतवार है उस टोटके का दिन कि
अब न फूले बौराए तो काट डालूंगा-
वे बौरा गए
खूब फूले फले तुरई और आम

मगर दफ्तरों में अब भी
बांझ पड़ी हैं फाइलें
उन्हें शर्म नहीं आती नीबू की तरह
आम और तुरई की फलदार
संवेदनशीलता वहां है नदारद
वेतन सरकार की मजबूरी है
और काम के लिए
कलदार वज़न जरूरी है
चाहकर भी मैं उन्हें
नहीं दे सकता ऐन इतवार
कुल्हाडी़ चलाने की धमकी
क्योंकि
उनका इतवार शनिवार से ही
रहता है अनुपस्थित
दफतर की फाइलों से ।

No comments:

Post a Comment